«बंदर और मगरमच्छ» एक प्रसिद्ध पंचतंत्र की कहानी है जो बच्चों को चतुराई, दोस्ती और जीवन में सही निर्णय लेने की सीख देती है। यह कहानी एक चालाक बंदर और एक मगरमच्छ की है, जिनकी दोस्ती लालच और चालाकी की परीक्षा से गुजरती है। सरल भाषा और रोचक घटनाओं के साथ यह कहानी छोटे बच्चों के लिए मनोरंजक और शिक्षाप्रद दोनों है। आइए पढ़ते हैं यह मज़ेदार हिंदी कहानी।

बंदर और मगरमच्छ
एक बार की बात है, एक बड़ा सा आम का पेड़ एक नदी के किनारे था। उस पेड़ पर एक चालाक बंदर रहता था। वह हर दिन पेड़ से मीठे-मीठे आम खाता और बहुत खुश रहता।
एक दिन, एक मगरमच्छ नदी से तैरता हुआ आया और पेड़ के नीचे आराम करने लगा। बंदर ने उसे देखा और दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
«अरे मगरमच्छ भाई, क्या तुम भूखे हो?» बंदर ने पूछा।
«हाँ, मैं बहुत थक गया हूँ,» मगरमच्छ ने कहा।
बंदर ने कुछ आम तोड़े और नीचे फेंके। मगरमच्छ ने खाकर कहा, «बहुत स्वादिष्ट हैं!»
धीरे-धीरे वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए। बंदर रोज मगरमच्छ को आम खिलाता।
एक दिन, मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को बंदर के आम के बारे में बताया। उसकी पत्नी ने कहा, «अगर वह आम रोज खाता है, तो उसका दिल कितना मीठा होगा! मुझे उसका दिल चाहिए।»
मगरमच्छ ने मना किया, लेकिन उसकी पत्नी ज़िद करने लगी। मजबूरी में मगरमच्छ ने बंदर से कहा, «चलो, मैं तुम्हें अपने घर ले चलता हूँ। मेरी पत्नी तुमसे मिलना चाहती है।»
बंदर खुश होकर उसकी पीठ पर बैठ गया। जैसे ही वे नदी के बीच पहुँचे, मगरमच्छ बोला, «मुझे माफ़ करना दोस्त, मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती है।»
बंदर चौंक गया, लेकिन वह बहुत चतुर था। उसने तुरंत कहा, «ओह! क्यों नहीं बताया पहले? मैं तो अपना दिल पेड़ पर ही छोड़ आया हूँ। चलो वापस चलते हैं, मैं ले आता हूँ।»
मगरमच्छ उसकी बात मान गया और पेड़ की ओर लौटने लगा। जैसे ही वे किनारे पहुँचे, बंदर झट से पेड़ पर चढ़ गया।
«धोखेबाज़ मगरमच्छ!» बंदर ने कहा। «क्या कोई दिल शरीर के बाहर रखता है? अब जाओ, मैं तुम्हारा दोस्त नहीं!»
मगरमच्छ शर्मिंदा होकर चुपचाप लौट गया।
शिक्षा:
बुद्धिमानी से कठिन समय में भी बचा जा सकता है।