«कौआ और उल्लू» एक प्रसिद्ध पंचतंत्र की कहानी है जो हमें सिखाती है कि हर प्राणी की अपनी विशेषता होती है, और किसी की कमज़ोरी को कभी मज़ाक में नहीं लेना चाहिए। यह कहानी एक चालाक कौए और शांत मगर बुद्धिमान उल्लू के बीच संवाद और व्यवहार के माध्यम से हमें सम्मान, समझदारी और परिपक्वता का पाठ पढ़ाती है। अगर आप अपने बच्चों को संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली लघु कथा (laghu katha) सुनाना चाहते हैं, तो यह कहानी अवश्य पढ़ें।

बहुत समय पहले की बात है। जंगल में एक कौआ रहता था जो बहुत ही चतुर और दूरदर्शी था। वहीं, पास के पेड़ की खो में एक उल्लू भी रहता था। दोनों की प्रवृत्ति अलग थी — कौआ दिन में सक्रिय रहता और उल्लू रात में।
एक दिन कौए ने देखा कि उल्लू हमेशा रात को ही बाहर निकलता है, और दिन भर सोता है। कौए ने सोचा, “यह अजीब पक्षी है, जो दिन में कुछ नहीं करता और अंधेरे में उड़ता है। शायद यह बुद्धिमान नहीं है।”
एक दिन कौए ने उल्लू से कहा, “भाई, तुम दिन में क्यों नहीं उड़ते? रोशनी में सब साफ़ दिखता है। रात को तो कुछ दिखाई ही नहीं देता।”
उल्लू हँसकर बोला, “मैं रात को ही देख सकता हूँ। तेज़ रोशनी में मेरी आँखें काम नहीं करतीं।”
कौए ने उसका मज़ाक उड़ाया, “अरे, ये कैसी आँखें हैं जो उजाले में नहीं चलतीं? तुम्हें तो हमेशा अंधेरे में ही रहना पड़ता है!”
उल्लू गंभीर होकर बोला, “जो चीज़ हमें समझ नहीं आती, उसका मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए। समय आने पर अंधकार ही तुम्हारा सहारा बन सकता है।”
कौए ने उसकी बात को हल्के में लिया और उड़ गया।
कुछ समय बाद जंगल में शिकारियों ने जाल बिछाया। दिन में उजाले में कौआ उन्हें नहीं देख सका और फँस गया। रात को वही उल्लू आया और अंधेरे में सब कुछ देखकर उसने जाल काट दिया और कौए को छुड़ा दिया।
कौए को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने उल्लू से माफ़ी माँगी।
शिक्षा :
हर प्राणी की अपनी विशेषता होती है। किसी की कमज़ोरी को मज़ाक न समझें, वह एक दिन आपकी ताकत बन सकती है।